BHADAURIYA RAJPUT VANSH

भदौरिया राजपूत चौहान राजपूतो की शाखा है, इनका गोत्र वत्स है और इनकी चार शाखाए राउत, मेनू, तसेला, कुल्हिया, अठभईया हैं, भदौरिया राजपूत कुल का नाम है। इनका नाम ग्वालियर के ग्राम भदावर पर पड़ा। इस वंश के महाराजा को 'महेन्द्र' (पृथ्वी का स्वामी) की उपाधि से संबोधित किया जाता है। यह उपाधि आज भी इस कुल के मुखिया के नाम रहती है |इस कुटुम्ब के संस्थापक मानिक राय, अजमेर के चौहान को मना जाता है, उनके पुत्र राजा चंद्रपाल देव (७९४-८१६) ने ७९३ में "चंद्रवार" (आज का फिरोजाबाद) रियासत की स्थापना की और वहां एक किले का निर्माण कराया जो आज भी फिरोजाबाद में स्थित है। ८१६ में उनके पुत्र राजा भदों राव (८१६-८४२) ने भदौरा नामक शहर की स्थापना की और अपने राज्य की सीमा को आगरा में बाह तक बढ़ा दिया,
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महाराज शल्यदेव भदौरागढ़ के संग्राम में कुतबूददीन एबक की विशाल फौज से लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये यद्यपि वे चाहते तो कुतबुददीन से संधि कर अपने प्राण बचा सकते थे पर उन्होंने बलिदान देना श्रेष्ठ समझा ये युद्ध इतना भयंकर था कि अरनोटा नदी का जल ढाई कोस तक रक्त रंजित हो गया था महाराज शल्यदेव के ऩिधन उपरान्त सहसा भदौरिया वंश का लोप हो गया था परंतु उनकी सिकरवार रानी गर्भवती थीं प्रसवकाल बहुत समीप होने से वह वंश रक्षार्थ सती न हो सकीं महाराज शल्य देव की शेष रानियां सती हो गईं पर सिकरवार रानी को पुरोहित घनश्यामदास हरदेनिया तथा भूपति खंगार गुप्त सुरंग से निकाल ले गये और रानी के भाई राव शिखरदेव के पास सीकरी पहुंचा दिया एक सप्ताह बाद रानी ने पुत्र को जन्म दिया अगर यह पुत्र न होता तो भदौरिया शाखा का अस्तित्व समाप्त हो गया था इस पुत्र का नाम रजूराव रखा गया जिन्होने बड़े होकर अपना खोया हुआ राज्य मुसलमानि व मेवों को परास्त कर पुनः प्राप्त किया ।।
महाराज रजूराव के चार पुत्र चार रानियों से उत्पन्न हुए जो इस प्रकार हैं (१) डगर बरसला के परिहार राव की बेटी उनकी प्रथम रानू थीं जिनसे ज्येष्ठ पुत्र बामदेव हुए जो राव कनेरा बनाये गये (२)मुरैना के ग्राम ऐसा के तोमर राव गुमान सिंह की बेटी से द्धितीय पुत्र मान सिंह की संतान मैनू भदौरिया ठिकाना पावई (३) नारकेजरी के गौर राजा ग्यान सिंह की बेटी से तास सिंह नाम के पुत्र के वंशज तसेले भदौरिया कहलाये ठिकाना अकोड़ा रहा (४) लहार के राजा करनसिंह कछवाह की बेटी से उदयराज नाम के पुत्र हुए जो राज्य के उत्तराधिकारी बने व राजगद्दी पर बैठे | इसके २०० वर्ष बाद वटेश्वर के राव भाव सिंह से कुल्हैया शाखा का प्रादुर्भाव हुआ इसके भी लगभग ५० वर्ष उपरान्त राजा चन्द्रसेन के चार पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र करन सिंह राजा बने राजा करन सिंह के समय मे ही अटेर किले का निर्माण प्रारंभ हुआ राजा चन्द्रसेन के द्धितीय पुत्र मानकचंद्र निसन्तान रहे तृतीय पुत्र वीरमदेव के वंशज चन्द्रसेनिया भदौरिया कहलाए इन्हें जेवरा की जागीर दी गयी चौथे पुत्र मानचंद्र भी निसंतान रहे इनके भी करीब ३० बरस उपरांत अठभैया शाखा अस्तित्व में आयी सबसे बाद में राजवंश से कुंवर शाखा का प्रस्फुटन हुआ|
भदावरघार की ग्राम तालिका निम्न प्रकार है (1) रावत भदौरियोँ के ग्राम->ठिकाना कनेरा गढ़ी,सराय गढ़ी एवँ परोसा गढ़ी प्रमुख हैँ रजूराव के सबसे ज्येष्ठ पुत्र राव कनेरा हुए द्धितीय पुत्र राव स्वरूपदेव को राव की उपाधि के साथ सराया की जागीर दी गई तथा सहजनदेव को नवीन गढ़ी कोट परोसा मेँ बनवा कर लाल साहब की उपाधि व जागीर दी गई इनके वँश के गाँव कोट, परोसा, हरीछा कनैरा कुटरोली, खेड़ा शुक्लपुरा तथा चौम्हो गड़ेर अँगदपुरा हैँ । इसी प्रकार इसी वँश मेँ जो सराया की जागीर थी उसके जागीरदार राव स्वरूपदेव के बाद उनके पुत्र सहजदेव राव सराया हुए ।
तत्पश्चात उनके पुत्र हरसिँह देव राव सराया बने उपरान्त उनके पुत्र मलहदेव राव सरायाबने इनके दो पुत्र थे ज्येष्ट पुत्र रोहतास देव राव सराया बने एवँ द्धितीय पुत्र ग्यानचन्द्र ने अपने नाम से ग्यानपुरा गाँव बसाया ग्यानपुरा से 5 ग्राम बसे किशन की गढ़िया, पीला डाड़ा, रमपुरा कसोँगा । तथ राव रोहतास के 4 पुत्र हुए ज्येष्ट पुत्र दसरथ देव राव बने द्धितीय पुत्र भुवनदेव ने भोनपुरा बसाया तृतीय पुत्र जयचन्द्र चम्बल पार कर के खेरा व गाती गाँव बसाये चतुर्थ पुत्र विजयचन्द्र जनश्रुति अनुसार निःसँतान रहे सराया के बाद थोना ग्राम बसा इस खेरे मेँ आज भी प्राचीन भवन के अवशेष तथा राव सराया के सँरछण मेँ रहे जैन परिवार के भवनोँ के अवशेष हैँ ।
राव दशरथ देव के दो पुत्र थे कीरत सिँह व देवसेन कीरतसिँह के 4 पुत्रोँ मेँ ज्येष्ट पुत्र शालवाहन राव सराया बने द्धितीय लढ़िमदेव ने साँकरी गाँव बसाया तृतीय कनकसिँह की जानकारी नहीँ चौथे नारायण पूर्व मेँ जा बसे । राव शालवाहन के 4 पुत्रोँ मेँ सबसे ज्येष्ट पुत्र साँरगदेव राव सराया बने द्धितीय हमीरदेव ने खेरा गोअरा बसाया तीसरे पुत्र रनजीत सराया मेँ ही रहे चौथे पुत्र भोपतराव ने सिहुड़ा गाँव बसाया ।
साँरगदेव के 7 पुत्रोँ मेँ ज्येष्ट खरगसेन राव बने द्धितीय हेमसेन तथा छटवेँ गम्भीर देव पूरब मेँ जा बसे तूतीय जितवार सिँह ने कनकपुरा बसाया चौथे ताराचन्द्र ने रमपुरा तथा पाँचवे धर्मगँदराय ने छूँछरी गाँव बसाया सातवेँ का वँश नहीँ चला । भुवनदेव ने 1595 मेँ भुवनपुरा बसाया था इनके पुत्र कपूरशाह के 6 पुत्र थे बड़ी रानि जो तोमर पुत्री थीँ से दो पुत्र हुए जेठे प्रेमराव ने अहेँती कचोँगरा व परसोना बसाया कचोँगरा मेँ प्रेमराव का स्मारक भी है अखयराज ने कनावर गाँव बसाया अखयराज खाँड़ा चलाने मेँ सिद्धहस्त थे और अत्यन्त वीर थे अतः उन्हेँ खाँड़ेराव की उपाधि प्राप्त थी तथा वे खाँड़ेराव के नाम से प्रसिद्ध थे कनावर की 16 गढ़ियाँ थीँ इनमेँ चरी, कोट, भगत की गढ़िया, जिन्द की गढ़िया, किन्नोठा, नदोरी, सोनेपुरा, बिण्डवा, बहारायपुरा, के अतिरिक्त उ.प्र. मेँ मिहोली, गुलाब की गढ़िया व कसउआ इत्यादि हैँ कपूरशाह की दूसरी रानी कछवाह थीँ इनके दो पुत्रो मेँ से प्रथम पूरनसेन भुवनपुरा मेँ ही रहे तथा द्धितीय छँगदसेन भदाकुर तथा नहरा गाँव बसाये पुरनसेन के पुत्र ने कँचनपुरी गाँव बसाया ।
इसके अलावा राव स्वरूपदेव के वँशजो ने निम्नलिखित गाँव और बसाये - सोई ग्राम चिकनी ग्राम हीरालालपुरा रूपशाहपुरा बीच का पुरा बँगला धर्मदास का पुरा भोग काबाग महाराजपुरा जनौरा कुम्हरौआ बिक्रमपुरा लछ्मीपुरा मँगदपुरा बिलौहरा कल्यानपुरा चरथर काँछुरी जरहौली अजीत का नगला हवलिया सीँगपुरा कुकापुर असवा धमना विजयपुरा सधावली सिमरई इत्यादि ।
नोट - उपरोक्त मेँ कुछ बेचिराग कुछ उ.प्र. मेँ हैँ कुछ मेँ एक भी भदौरिया परिवार नहीँ रहता है एवँ इसके अलावा वर्तमान मेँ अनेक नये मजरे बन गये हैँ । इसके अलावा राव सहजनदेव लाल साहब (लला जू) ] के गाँव कोट परौसा हरीछा कुटरोली खेड़ा शुक्लपुरा इत्यादि हैँ । (2) ठिकाना पावई मैनू भदौरियोँ के ग्राम-> मानसिँह के 2 पुत्र थे ज्येष्ट हमनदेव पावई के राव बने द्धितीय कायमदेव ने इमलिया गाँव मेहगाँव के निकट बसाया जिसका बाद मेँ पतन हो गया । हमनदेव के दो पुत्र सारँगदेव राव पावई व हरसिँहदेव हुए साँरँगदेव के करनदेव के जितवारदेव के 2 पुत्रोँ मेँ जेठे कुवँरसेन लाव पावई व सोभनदेव ने पाली ग्राम बसाया कुवँरसेन के जेठे पुत्र कलियानदेव राव पावई द्धितीय वासुदेव के पुत्र हरचन्द्र के 3 पुत्र हुए बड़े थानसिँह ने गिगँरखी व लालसिँह ने कुठौँदा बसाया हरचँद पावई से लालसिँह के पुत्र ने खेरा बाग व मढ़ाखेरा बसाया इन्हीँ के पुत्र अर्जुनसिँह ने बरहद गाँव आबाद किया इनके वँशजो ने धनौली गोरमी पचैरा पापरौली बसाये इनके पुत्र जैतसिँह बरहद रहे इसी वँश मेँ छगँदशाह व मँगदशाह छगँदशाह ने गोहद युद्ध मेँ वीरता प्रगट की एवँ पचैरा के युद्ध मेँ दोँनोँ के शिर कट जाने पर दोँनोँ के रुण्ड उठे थे अर्थात बिना सिर के दोँनोँ के धड़ोँ ने अनेक शत्रुओँ का सँहार किया ।
इनके भाई धारँगदेव भी वीरगति को प्राप्त हुए झाँसी के तालबेहट गाँव मेँ आज भी इनकी पूजा होती है कुवँरसेन के छटवेँ पुत्र डूड़नदेव ने कोँहार गाँव बसाया इनके 2 पुत्र धर्मवीर व कर्मवीर सिँह थे धर्मवीरसिँह के वँश मेँ क्रमशः कलियानदेव विनायकदेव धर्मागँद रामसिँह थानसिँह रतनसिँह दलसिँह सभी राव पावई बने भाई रतनसिँह भी पावई रहे धर्मागँद के भाई उदयराम के पुत्र जँगीशाह ने मसूरी गाँव बसाया इनके भाई भावसेन ने बिरगवाँ बसाया पाली गाँव से गढ़पारा बिजपुरी कुपावली लावन गोपालपुरा बसे इसी वँश के छत्रसाल ने मुस्तरी-मुस्तरा बसाये वरसिँह ने डूगँरपुरा कृपाराम ने गौना गाँव फतहसिँह ने रायपुरा इसके अलावा पर्रावन अमृतपुरा इम्लाँहड़ी खुर्द नीँवगाँव कछपुरा छजूपुरा सुरूरू सुरावली तथा यूपी मेँ लखनपुरा इत्यादि । (3) ठिकाना अकोड़ा तसेले
भदौरियोँ के ग्राम -> ठिकाना अकोड़ा व तसेले भदौरियोँ के ग्राम -> तास सिँह के दो पुत्र बच्छराज व तरँगदेव बच्छराज पुत्र सुल्तान सिँह ने अकोड़ा त्याग्कर ठिकाना परा बनाया इनके 4 सुरजनदेव धैर्यदेव अहमनदेव और रुद्रदेव थे सुरजन पुत्र बाह के केँजरा गाँव फिर फिर मेहगाँव के अजनोँता मेँ जागीर मिली इनके वँश मेँ हीरामन ने सिरसी व धर्मागँद ने पड़कोली फिर विनायकदेव, सुनायक ने अजनौल इनके दलपतराव ने हँसपुरा के वँशज बजरँगदेव ने पुर शिखरदेव ने जम्हौरा व रैपुरा हमीरदेव ने जारी ग्राम भरतसिँह ने स्यावली अमरदेव ने ईँगुरी बाँधवराव ने अकलोनी इसी क्रम मेँ अछाई गुगाँवली चासड़ फूप करियापुरा पटघाना उदन्नपुरा बिछौली रिदौली बिरगँवाँ रमटा बरही दैपुरा पिढ़ौरा देहरा बगुलरी सारूपुरा स्यावली चिलोँगा रैपुरा मोरौली नन्दपुरा इत्यादि ।
)तसेले भदौरिया- ठिकाना अकोड़ा था बाद मेँ अकोड़ा मेँ कुवँर पद की जागीर होने से तसेले राव परा जा कर बसे उनकी बहादुरी के लिये उन्हेँ भैयाजू की उपाधि और रिदौली की जागीर मिली । (4) ठिकाना बटेश्वर कुल्हैया भदौरियोँ के ग्राम-> कूल्हैया भदौरियोँ के ग्राम -> राव भावसिँह ने बटेश्वर किला बनवाया इनके 5 पुत्र (1) खरगसेन को अपने नाम से बसे खरगपुरा की गढ़ी बना जागीर प्राप्त की (2) नारायणमल ने चम्बल के दछिण कोट नाम की किला समान गढ़ी बनवाई जो कोट रमा के नाम से विख्यात है (3) सकतसिँह बटेश्वर रहे (4) चतुर्थ पुत्र कोट मेँ नारायणमल के साथ रहे (5) ? नारायणमल के पुत्र अर्जुनदेव ने उदी (Udi) गाँव बसाया इन्हीँ के वँशजोँ ने रानीपुरा (Ranipura) इसके बाद शालवाहन ने लोधूपुरा गांव बसाया।।
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रज्जू भदौरिया ने सदा अकबर का प्रतिरोध किया,जौनपुर के शर्की सुल्तान हुसैनशाह को भी भदौरिया राजपूतो ने हराया था,
इन्होने दिल्ली के सुल्तान सिकन्दर लोदी के विरुद्ध भी बगावत की थी,
एक भदोरिया वीर सेनानायक बाबू खांडेराव भदौरिया हल्दीघाटी के युद्ध में रामशाह तंवर और महाराणा प्रताप के साथ मिलकर मुगलों से वीरतापूर्वक लड़ा था।
जब मुगलों के साम्राज्य का पतन हो रहा था, तब भदौरिया प्रभावशाली व सर्वशक्तिमान थे | १७०७ में सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद हुयी लडाई में भदावर के राजा कल्याण सिंह भदौरिया ने पर धौलपुर कब्जा किया और १७६१ तक धौलपुर भदावर रियासत का हिस्सा रहा | १७०८ में भदावर सैनिक, उम्र-ऐ-उज्ज़म महाराजाधिराज श्रीमान महाराजा महेंद्र गोपाल सिंह भदौरिया ने गोंध पर धावा बोला, राणा भीम सिंह जाट को युद्ध में हरा कर गोंध के किले पर कब्जा किया और गोंध को भदावर में मिला लिया १७३८ तक गोंध भदावर की हिस्सा रहा ,
पहले इनके चार राज्य थे ,चाँदवार, भदावर, गोंध, धौलपुर,
इनमे गोंध इन्होने जाट राजाओ से जीता था,अब सिर्फ एक राज्य बचा है भदावर जो इनकी प्रमुख गद्दी है,राजा महेंद्र अरिदमन सिंह इस रियासत के राजा हैं और यूपी सरकार में कई बार मंत्री रहे हैं.ये रियासत आगरा चम्बल इलाके में स्थित है,
अब भदौरिया राजपूत आगरा ,इटावा,भिंड,
ग्वालियर,कानपूर,पूर्वांचल,बिहार में रहते है ।
भदावर धार-> भदौरिया राजपूतों का जिस भूभाग में निवास है उस भूभाग को भदावर घार कहा जाता है इस क्षेत्र का सबसे घनी आबादी वाला भाग फतेहाबाद और बाह व इटावा का दक्षिणी भाग जो चकरनगर के पास तक है एवं भिण्ड जिले की अटेर तहसील तथा भिण्ड तहसील और मेहगांव तहसील भदावरघार के अन्तर्गत है ।।।
(तस्वीर में भदौरिया राजपूतो का चम्बल का अटेर दुर्ग जहाँ खून का तिलक लगाकर ही राजा से मिलते थे गुप्तचर)
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Reference---
1--Ater Fort Bhind - Madhya Pradesh Tourism
2-- http://rajputanasoch-kshatriyaitihas.blogspot.in/2015/06/bhadauriya-rajput-vansh.html?m=1

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